Short Moral Stories In Hindi-कंजूस सेठ की दावत – हिंदी कहानी

कंजूस सेठ की दावत

चंदनपुर गांव में मनी राम नाम के एक सेठ जी रहते थे। हालांकि उनके पास धन दौलत की कमी नहीं थी। मगर कंजूस बहुत थे।( Short Moral Stories In Hindi -कंजूस सेठ की दावत )

एक बार वे एक दुकान पर मछली खरीदने गए। दुकानदार ने जब मछली के पैसे बताए तो सेठजी बोले ये तो बहुत ज्यादा है। तुम तो बहुत टकराए हो यार जहां से तुम लाते हो वहां इतने का थोड़े मिलता होगा।

तब दुकानदार ने कहा जाओ तो फिर थोक के रेट के पास चले जाओ . सेठ जीत थोक रेट की दुकान पर पहुंचे और वहां पैसे पूछने लगे।

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जब उन्होंने पैसे बताए तो वे सेठजी को फिर से बहुत ज्यादा लगे और सेठजी बोल पड़े कि जहां से तुम मछली लाते हो वहां कितने की थोड़ी मिलती होगी।

दुकानदार – हां भाई हां क्यों नहीं हम तो नदी से मछली लेकर आते हैं वहां बिल्कुल मुफ्त मिलती है। जाओ वहीं से जाकर ले लो।

सेठ जी को यह बात जंच गई। जब मुफ्त में कोई चीज मिल रही है तो फिर पैसे देकर क्यों लें  वह नदी की खोज में निकल पड़े और आखिरकार पास के गांव में पहुँचकर उन्हें नदी मिली। 

मछली पकड़ने के चक्कर में सेठ जी नदी में काफी गहराई तक पहुंच गये। तभी नदी में एक भयानक सैलाब आया और अचानक नदी का पानी बढ़ने लगा। सेठ जी को याद आया कि उन्हें तो तैरना आता ही नहीं। 

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फिर सेठ जी घबराने लगे। जब वो नदी से बाहर नहीं निकल पाए तब उन्होंने मन में एक मन्नत मांगी। अगर मैं नदी से बाहर निकल जाऊं तो मैं एक सौ एक ब्राह्मणों को भोजनखिलाऊंगा। मन्नत मांगने से उनके मन में एक आत्मबल आ गया पर वो धीरे धीरे आँखे बंद करके आदि दूर तक आ गये। 

आँख खोलकर उन्होंने देखा तो पछताने लगे। मैंने बिना मतलब का ही एक सौ एक ब्राह्मणों के लिए कह दिया । आदि दूर तो मैं आ ही गया हूं। तब उन्होंने फिर से मन में ठाना कि अगर मैं अब नदी से बाहर निकल जाऊं तो इक्यावन ब्राह्मणों को भोजन कराऊंगा। 

थोड़ा साहस करके उन्होंने फिर से तैरना शुरू किया तो थोड़ी दूर और आगे आ गए। अब सिर्फ चौथाई हिस्सा ही रह गया था जब उन्होंने देखा कि अब नदी का सिर्फ चौथाई हिस्सा ही बचा है तो वो फिर बोल पड़े अगर मैं अब बाहर निकल गया नदी से तो इक्कीस ब्राह्मणों को भोजन करा दूंगा।

ऐसे ही करते करते सेठ जी थोड़ा और किनारे पहुंच गए और फिर मन में सोचने लगे कि इक्कीस ना सही लेकिन ग्यारह ब्राह्मणों को तो मैं भोजन खिला ही दूंगा। 

फिर थोड़ा तैरने के बाद जब दो तीन फीट ही रह गया था तब तक सेठ जी फिर बोल पड़े। ग्यारा नहीं पर एक ब्राह्मण को तो मैं खिलहि दूंगा जरूरखिलाऊंगा । ऐसे करते करते सेठ जी आखिरकार नदी से बाहर आ ही गए। 

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बाहर निकलने के बाद सेठ जी ने सोचा अब कह तो दिया है पर एक ब्राह्मण को भोजन कराऊं कैसे। कहने को तो कह दिया सेठ जी ने के एक ब्राह्मण को भोजन करा देंगे। 

पर अब पैसे बचाने के चक्कर में सेठ जी ऐसे ब्राह्मण की खोज में चल दिए जोकि बहुत कम खाता हो। कई जगह ढूँढने के बाद भी सेठ जी को बहुत कम खाने वाला ब्राह्मण कहीं नहीं मिला। कई लोगों से पूछने बताने के बाद आखिरकार सेठ जी को एक ब्राह्मण मिल ही गया। 

सेठ जी उस ब्राह्मण के घर पहुँचे और जाकर कहने लगे मुझे एक ब्राह्मण की दावत करनी है इसीलिए आया हूं। ब्राह्मण ने सेठ जी से कहा जी ठीक है मुझे आपका निमंत्रण मंजूर है।

अब सेठ जी ने ऐसा प्रश्न कर दिया जिसके लिए ब्राह्मण देवता तैयार नहीं थे। सेठ जी ने पूछा आप कितना खा लेते हैं। इतना सुनते ही ब्राह्मण देव समझ गए कि यह सेठ बहुत कंजूस है जो ऐसी बात पूछ रहा है। 

अब सेठ जी कंजूस थे तो ब्राह्मण देवी कम चालाक नहीं थे। वह तुरंत ही बोल पड़े मैं तो मुश्किल से सिर्फ दो पीढ़ियां ही खा पाता हूं। सेठ जी की खुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं था। उन्हें लगा कि बस यही उचित ब्राह्मण है और तुरंत बोल पड़े। 

देखिये पंडितजी मैं 9 बजे दुकान पर चला जाता हूं। आप उससे पहले आकर भोजन कर लीजिएगा। पंडित जी राजी हो गए और सेठ जी प्रसन्न मन से घर आ गए। 

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सुबह सुबह भोजन की सारी तैयारी करके सेठ जी पंडित जी का इंतजार करने लगे पर 9 बजे तक भी पंडितजी घर नहीं आए। धीरे धीरे 10 बज गए। 

आखिरकार थक हारकर सेठ जी सेठानी से यह कहकर दुकान चले गए कि देखो मैं जाता हूं मेरे पीछे पंडित जी आए तो उन्हें भोजन करा देना और 11 रुपये दक्षिणा भी दे देना। 

सेठ जी के जाने के बाद करीब 12 बजे पंडितजी घर आए। उनके आते ही सेठानी उनके हाथ पैर धुलवाने लगी। तभी पंडितजी फूट फूटकर रोने लगे। 

सेठानी ने तुरंत पंडितजी से पूछा कि क्या हुआ पंडितजी? पंडितजी कहा क्या बताएं आज के दिन तुम्हारी देवी जैसी सासू मां की याद आ गई।

वो जब भी हमें निमंत्रण के लिए बुलाती थीं तो हाथ पैर धुलवाते समय हमें 11 अशर्फियां देती थीं। इतना सुनते ही सेठानी तुरंत भावुक हो पड़ीं और कहने लगीं कि सासू मां नहीं है तो क्या हुआ पंडितजी मैं तो हु ना। 

और सेठानी ने 11 अशर्फियां लाकर पंडितजी को दे दीं। इसके बाद सेठानी ने पंडितजी के लिए बढ़िया सा भोजन लगाया। और पंडितजी ने पेट भरकर भोजन किया। 

भोजन खतम करने के बाद पंडित जी फिर फूट फूटकर रोने लगे। तभी सेठानी ने फिर से पंडितजी से पूछा कि अब क्या हो गया पंडितजी क्या बताऊं सेठानी जी आपकी लक्ष्मी स्वरूप सासू मां जब जिन्दा थीं तो वो मुझे भोजन कराने के बाद भी इक्यावन अशर्फियां और साथ ही साथ आटा और चावल का भी दान करती थीं। 

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पर वो सब भी पुरानी बातें हैं अब वो समय कहां लौटकर आएगा। चलिए ठीक सेठानी जी अब मैं विदा लेता हूं।तभी सेठानी बोल पड़ी कि पंडित जी आप चिंता मत कीजिए जैसा पहले होता आया है आगे भी वैसा ही होता रहेगा। 

इतना कहकर सेठानी ने आटा, चावल, तेल, घी आदि सारा सामान एक झोले में बांधकर पंडित जी को दे दिया और पंडितजी सारा सामान लेकर अपने घर को निकल लिए।

रात को जब सेठ जी लौटकर घर आए तब उन्होंने सेठानी से पूछा पंडितजी भोजन करने आए थे। तब सेठानी जी ने कहा कि मैंने उन्हें भोजन तो अच्छे से करा दिया था पर वह बार बार रो रहे थे। इस पर सेठ जी ने आश्चर्य से पूछा। 

बार बार रो रहे थे वो क्यों फिर सेठानी जी ने बताया कि उनको बार बार सासू मां की याद आ जाती थी लेकिन सासू मां की कोई कमी महसूस नहीं होने दी और उनकी सारी दान दक्षिणा पूरी की। सेठ जी बुरी तरह से चौंक गए।

अरे कैसी दान दक्षिणा। जब सेठानी जी ने पूरी कहानी बताई तो गुस्से से सेठ जी का खून खौलने लगा। सेठ जी ने तुरंत अपनी लाठी उठाई और पंडित जी के घर की तरफ चल दिया। उधर पंडित जी भी होशियार बैठे हुए थे उन्हें मालूम था कि जब कंजूस सेठ को सारी बात पता चलेगी तो वह बहुत हंगामा करेगा।

इसलिए पंडित जी ने पहले ही सारी तैयारी कर रखी थी और पपंडिताइन को यह बता रखा था कि जैसे ही सेठ जी उनके घर आए। वह तुरंत पंडितजी को एक सफेद कफन उड़ा दे।

और जब सेठ जी आ गए। पपंडिताइन रोने लगे और कहने लगे पंडितजी सब कुछ छोड़ कर चले गए अब हमारा क्या होगा? हमको भी साथ क्यों नहीं ले गए।

फिर सेट जीकहा अरे इनको क्या हो गया अरे सबेरे अच्छे घर में बैठे थे पता नहीं कहा का एक दाढ़ी वाला सेट आया और इनको वहां क्या खिला दिया।  वहां से जबलौटे हैं वे उलटी करते करते पंडितजी हमको छोड़कर चले गए थे। 

फिर कहां से कफन के लिए हम पैसे लाएंगे। कोई बेटे नहीं हैं घर में कैसे इनको फूंके।

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इतना सब कुछ देख कर सेठ जी बहुत घबरा गए और अपनी जेब से कुछ रुपये निकालकर पंडित तानी को देते हुए बोले जी ये लीजिए यह कुछ रुपए हैं आप इनसे पंडित जी का दाह संस्कार करा लीजिएगा। और बाकी भी जो जरूरत का सामान होगा वो मैं घर पहुँचकर भिजवा दूंगा।

आप तो बिल्कुल भी परेशान मत होइए। इतना कहकर सेठ जी फौरन अपने घर को निकल लिए। और डर के मारे दाह संस्कार के सामान के साथ ही दो महीने का राशन भी पंडितजी के घर भिजवा दिया।

इसके बाद दो महीने बीत गए और सेठ जी का दिया हुआ राशन पानी खत्म हो गया। तब पंडित जी ने फिर से कोई तिकड़म लगाने को सोचा। 

और एक सुबह 9 बजे के बाद जब सेठ जी अपनी दुकान के लिए निकल गए तब पंडित जी अपने घर से सेठानी से मिलने को चल दिए। दो महीनों से पंडित जी ने अपनी दाढ़ी भी नहीं बनाई थी सो लंबी लंबी दाढ़ी लेकर पंडित जी सेठानी के घर पहुँच गए। 

अब पंडित जी जितने चालाक सेठानी उतनी ही मूर्ख। पंडित जी को देखते ही सेठानी ने उनसे पूछा कि अरे पंडितजी आप तो मर गए थे ना। 

जिस पर पंडित जी ने उत्तर दिया हां मैं मर गया था। मैं सीधा स्वर्ग से आ रहा हूँ । क्या हैं की ओहा हज़ामत करने वाला कोई नै हैं न। तो यह में अपना दाढ़ी  हूँ। 

पंडित जी बहत चालक थे उन्होंने कही से पता लगा लिया की सेट जी के एक चुटकी नाम की एक लड़की थी जिसका कई साल पहले सौरगाबास हो गया था। 

पंडित जी सेठानी से कहा मुझे ओहा चुटकी मिली थी कुकी मेरा यह आना जाना रहता हैं तो उसने बोलै की पंडित जी मेरा घर बी चला जाना। मेरा माता पिता का हलचल ले आना और उन्हें भी मेरा समाचार दे देना। तभी तो में आपको समाचर देने आया हूँ। 

एहि सब सुनकर सेठानी बहत भाबुक हो गयी और पूछने लगी की मेरा चुटकी कैसा हैं?  

ये सुनकर पंडित जी जबाब दिया क्या बताऊ छुटकी तो बहुत कमजोर हो गई है। वहां कोई बढ़िया इन्तजाम नहीं है ना फल, फूल, मेवा, मिसरी कुछ नहीं मिलता। 

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अब मुझको ही देख लो मेरी दाढ़ी कितनी बड़ी हो गई है। वहां हजामत बनाने वाला भी कोई नहीं है। तभी तो मैंने सोचा कि यहां आकर अपनी दाढ़ी भी बनवा लूंगा और छुटकी का भी काम कर दूंगा। अब देखो मैं थोड़ी देर में जानेवाला हूं तो तुमको जो कुछ भी छुटकी को देना दीवाना हो वो मुझको दे देना। 

मैं जाकर उसको दे दूंगा अब सेठानी जी ने छुटकी के लिए बढ़िया बढ़िया व्यंजन और बोरी भरकर राशन सामग्री पंडित जी को दे दी और पंडित जी सारा सामान लेकर अपने घर चले आए। शाम को जब सेठ जी लौटकर घर आये तो सेठानी ने उन्हें कुछ नहीं बताया। किसी तरह सेठानी का दिया हुआ राशन। पंडित जी ने दो महीने चला लिया।

उसके बाद पंडित जी फिर से सेट जी के एहा आ पहुँचे पंडित जी को देखकर सेठानी खिलखिला उठीं। और पूछने लगीं कि क्या हाल चाल हैं पंडितजी।

जिस पर पंडित जी ने कहा हाल चाल बहुत बढ़िया है अब तो छुटकी एकदम तंदरुस्त हो गयी है। तुम्हारा दिया हुआ सामान देख कर वो बहुत खुश हो गई थी। उसने खूब खाया पिया। उसने तुम्हारा और सेठ जी का हाल चाल पूछा है 

और जानती हो तुम नानी बन गई हो। छुटकी कोल लड़का हुआ है अब तो सेठानी की खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था। अच्छा सुनो छुटकी ने कहा है कि अम्मा से कह देना कि नाती के लिए कुछ कपड़े और शगुन का सामान भिजवा दें। और हां उसने वहां दावत का भी इंतजाम किया है।  

तो उसके लिए कुछ राशन पानी भी भिजवा देना। अब तो सेठानी जी दौड़ दौड़कर सारे इंतजाम करने लगीं। उन्होंने तांगा बुलवाया और उसमें आटा चावल और सारा राशन भरकर पंडित जी को दे दिया। और जाते जाते कहा कि पंडित जी छुटकी से कहना कि उसकी अम्मा उसको बहुत याद करती है। हां हां क्यों नहीं कह दूंगा जरूर कह दूंगा। इतना कहकर पंडित दीन निकल लिए। 

तभी अचानक किसी काम से सेठ जी घर आ पहुँचे और देखा कि सेठानी तो दरवाजे पर खड़ी हैं। उन्होंने सेठानी से पूछा क्या बात है यहाँ क्यों खड़ी हो। कोई आया था क्या। तब सेठानी ने सेठ जी को बताया कि स्वर्ग से पंडित जी आए थे और आप नाना बन गए हैं। 

नाना मैं नाना कैसे बन गया। न मेरी कोई बेटी न कोई भतीजी। भला फिर मैं नाना कैसे बन सकता हूं। तब सेठानी जी ने सेठ जी को बताया कि अरे वो अपनी छुटकी है ना स्वर्ग में। उसको लड़का हुआ है। 

पंडित जी बता रहे थे यह सारी बातें सुनकर तो मानों सेठ जी को जैसे करंट लग गया हो। तुम्हारा दिमाग खराब है। उस पंडित ने तुमसे कुछ भी कहा और तुमने सब कुछ मान लिया। अरे कहीं वो तुमको ठगकर कुछ ले तो नहीं गया।

इतना सुनकर सेठानी जी ने बताया कि मैंने कुछ खास नहीं दिया। बस चुटकी के बेटे के लिए सोने की चेन कपड़े एक टोकरी फल आटा, चावल, दाल, तेल और दो महीने का राशन। 

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अब तो सेठ जी को काटो तो खून नहीं। सेठ जी अपनी अकल की अंधी बीवी और धूर्त पंडित का गुस्सा लेकर पंडित जी के घर की तरफ चल दिए। जब सेठ जी पंडित जी के पास पहुँचे तो उनसे हाथ जोड़कर माफी मांगने लगे। पंडित जी मुझे माफ कर दीजिए मैं आज के बाद कभी कम खाना खाने वाला ब्राम्हण नहीं ढूंढ लूंगा।

तब पंडित जी ने कहा ठीक है मैं तुम्हें माफ करता हूं लेकिन हर महीने कम से कम दो बार मुझे निमंत्रण के लिए बुलाना होगा। और हर बार एक सौ एक रूपये दक्षिणा भी देनी होगी। 

मुझे माफ कर दीजिए पंडित जी मैं हर महीने आपको दो बार दावत भी खिलाऊंगा और एक सौ एक रुपए दक्षिणा भी दूंगा। जिस पर पंडित जी ने मुस्कुराते हुए कहा जाओ अब तुम चैन से रहो। 

तो कैसा लगा आपको ये कहानी कमेंट करके जरूर बताना। 

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