Hindi Kahani | धोकेबाज़ दोस्त | Hindi Moral Stories

Hindi Kahani – धोकेबाज़ दोस्त – Hindi Moral Stories

धोकेबाज़ दोस्त

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(Hindi Kahani- Hindi Moral Stories)

एक बार की बात है शान्ता पुर गांव में गणपति नाम का एक धनी व्यक्ति रहता था । उसके पास टाइल्स वाला घर और चार एकड़ कृषि भूमि थी । गणपति अपनी जमीन पर खेती करके पैसा कमाता था और अपने परिवार के साथ खुशी से रह रहा था । गणपति एक दयालु व्यक्ति था । वह भोजन करने से पहले प्रतिदिन घर के पीछे की दीवार पर एक मुट्ठी चावल रखता था । बोलता था ही पांच तत्वों शीलू और मुझे आशीर्वाद दो। एक दिन गणपति का दोस्त शिशु गणपति के पास आया । और बोला  गणपति हम अपनी जमीनों को इस तरह खेती करके कितने दिनों तक कहते रहेंगे । अगर तुम हव कहूं तो हम एक साथ कुछ व्यापार कर सकते हैं ।

गणपति  ने बोला तुम्हारा खयाल अच्छा है लेकिन मैं कोई व्यापार नहीं कर सकता । शिशु  ने बोला तुम बस पैसे निवेश करो और आराम से रहो । हमारे व्यवसाय का ध्यान मैं रखूंगा । गणपति जो अपने दोस्त को मना नहीं कर पाया उसने अपनी चार एकड़ जमीन बेच दी और उस पैसे को शिशु को कारोबार शुरू करने के लिए दे दिया । कुछ दिनों के बाद शिशु गणपति के पास फिर आया और बोला गणपति हमें अपने कारोबार में भारी नुकसान हुआ  एक रुपया भी वापिस नहीं मिला है । गणपति को हालांकि लगा कि शिशु झूठ बोल रहा है लेकिन वह चुप ही रहा क्योंकि गणपति कोई अन्य काम नहीं कर सकता था और उसके पास पैसा भी नहीं बचा था इसीलिए वह चिंतित रहने लगा ।

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वो इस गांव में एक दैनिक श्रमिक के रूप में काम नहीं करना चाहता था जहां वो एक अमीर आदमी की तरह रह रहा था और इस गांव को उसने छोड़ने का फैसला किया ।रात में दीवार पर एक मुट्ठी चावल रखा और बोला  मेरी दोस्त ने मुझे धोका दिया । मैंने सब कुछ खो दिया  ये चावल की आखरी मुट्ठी है जो मैं पांच तत्वों को प्रदान करता हूं कृपया मुझे माफ करना । ये कहते हुए उसकी आँखों से आँसू बहने लगे ।

वहां नीम के पेड़ पर रहने वाली एक भूतनी ने गणपति की बातें सुनी और उसे दया आई । उसने उसकी मदद करने का फैसला किया । तब गणपति बिना किसी से कहे तीर्थयात्रा पर चला गया । अगले दिन सुबह वो भूतनी गणपति के भेस में शिशु के घर गई । अरी शिशु मैं उस स्थान पर जलाऊ लकड़ी नहीं बेच सकता जहां मैंने कभी फूल बेचे थे  इसीलिए मैं तीर्थयात्रा पर जा रहा हूं  कृपया मेरी पत्नी जब भी कुछ मांगी तो उसकी मदद कर देना ।

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गणपति मैं कैसे कर पाऊँगा मदद  मुझे भी तो तुम्हारी तरह नुकसान हुआ है  । मुझे तुम्हारी हालत का अंदाजा है शिशु मेरी टाइल्स वाली घर में छह कमरे हैं । मैंने हर कमरे की चार कोनों में सुराख या दफन की हुई है । मैंने प्रत्येक सुराही में दस हजार रुपए छिपाए हैं । जब भी मेरी पत्नी तुम्हारे पास आई उसे एक सुराही के बारे में बता देना । वो एक सुराही निकालेगी और उससे अपना खर्चा चला लेगी । ठीक है न भाई । शिशु ने इस मदद के लिए तुरंत सहमति जताई और अपना सर हमें हिलाया ।

अगले दिन गणपति की पत्नी शिशु के पास आई और पूछा मुझे नहीं पता कि तुम्हारा दोस्त कहां चला गया और कब तक वापस आएगा  क्या तुम मुझे कुछ पैसे दे सकते हो ?  शिशु ने उसे छिपी हुई बुराइयों का रहस्य नहीं बताया और बोला देखो तुम एक काम करो  अपना घर बेच दूं । बदले में जो पैसे मिलेंगे उससे तुम और तुम्हारे बच्चे रह सकते हैं ।

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गणपति की पत्नी ने कहा भाई लेकिन हमारी पुरानी टाइल्स वाले घर को तुरंत कौन खरीदेगा । चिंता मत करो भाभी मैं हूँ ना मैं खरीदूंगा तुम्हारा घर। मैं तुम्हें उस घर के लिए दस हजार रुपए दूंगा । गणपति की पत्नी ने कहा ठीक है मैं अपने बच्चों से पूछकर कल सुबह बताती हूं । इतना कहकर गणपति की पत्नी चली गई । तब शिशु ने सोचा गणपति ने अपने घर में लगभग तीन तीन लाख पैसे  रखे हैं और मैं उस घर को सिर्फ 10 हजार रुपए में खरीदने जा रहा हूं । इस बीच शैतान एक अमीर आदमी के

वेशमें गणपति के घर गया और उसने गणपति की पत्नी से कहा मीरा नाम सुबह है मैं पड़ोस के गांव में खाद्यान्न का कारोबार करता हूं । मैं अब इस गांव में अपना व्यवसाय शुरू करना चाहता हूं उसके लिए मुझे घर चाहिए । मैंने सुना है कि आप अपना घर बेचने जा रही है । अगर आप सहमत हूं तो मैं आपका घर 20 हजार रुपये में खरीद सकता हूं । अगले दिन गणपति की पत्नी ने ही शिशु से कहा बुरा मत मानेगा । एक व्यक्ति 20 हजार रुपए में मेरा घर खरीदना चाहता है । शिशु चौंक गया और बोला और ठीक था तो मैं तुम्हें 30 हजार दूंगा ।

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फिर सुबह के रूप में शैतान ने हर बार शिशु द्वारा कही गई राशि में 10 हजार रुपए जोड़े और इस घर का मूल्य बढ़ाना शुरू कर दिया । गणपति मेरे मित्र हैं इसीलिए पूरे सम्मान के साथ मैं तुमको दो लाख रुपए दूंगा और इस घर को खरीदूंगा  ये आखिरी बात । तब से बाबा के भेस में शैतान बोला  बहुत अच्छा श्रीमान शिशु आपके घर को पूरे सम्मान से खरीदना चाहते हैं तो ये घर आप इन्हें ही बेच दें । मैं कोई दूसरा घर खरीद लूंगा । इतना कहकर सुब्बा वहां से चला गया । तब शिशु ने पत्नी को दो लाख रुपए दिए और उस घर को खरीद लिया । घर खरीदने के बाद शिशु ने हर कमरे के कोनों में खुदाई शुरू कर दी लेकिन उसे मिट्टी के अलावा कुछ नहीं मिला ।

शिशु समझ गया कि उसे धोखा दिया गया है और ये भी महसूस किया कि उसे सही सजा मिली क्योंकि उसने ही तो पहले गणपति को धोखा दिया था । लेकिन ये बात वो किसी को बता नहीं सकता था ।

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कुछ दिनों के बाद गणपति ने अपनी तीर्थयात्रा पूरी की और एक शांतिपूर्ण मन से घर वापस आया । उसे पता चला कि शिशु ने दो लाख रुपये में उसका घर खरीदा है तो वो हैरान हो गया । तब उसने अपनी पत्नी से कहा शिशु ने हमारी पुरानी टेबल वाली घर को दो लाख रूपए में खरीदा । मुझे यकीन नहीं हो रहा है । तब उसकी पत्नी मुस्कुराई और बोली आपने पांच तत्वों को चावल दिए बिना कभी खाना नहीं खाया । उनमें से एक ने ही शायद हमारी समस्याओं को दूर करने में हमारी मदद की है ।

गणपति  ने बोला ही पाँच तत्व आपका बहुत बहुत धन्यवाद  और  गणपति को खुश देखकर शैतान बड़ी खुश हुई ।

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