एक हॉस्पिटल में एक बार एक वृद्ध मरीज को उसके परिवार वालों ने भर्ती कराया । उसका पैर टूट गया था घर में बाथरूम में फिसलकर । एक तो बुढ़ापा उस पर साँस का रोग और उस पर पैर का टूट जाना उस पर तो जैसे मुसीबतों का पहाड़ टूट गया । उसकी पत्नी भी कुछ साल पहले चल बसी थी । बूढ़े मरीज को जिस कमरे में रखा गया था हॉस्पिटल में वहां पर एक और मरीज पहले से था । वो भी वृद्ध था लेकिन बहुत कम बोलता था । So You Read (best inspirational stories with moral -प्रेरणादायक कहानी)
बूढ़े मरीज के घरवाले कुछ दिन तो आए फिर उन्होंने आना बंद कर दिया । पूछने पर हॉस्पिटल वालों ने उसे बताया कि अब कोई नहीं आएगा लेकिन उसे चिंता करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि उसके इलाज के पैसे दे दिए गए । बूढ़े मरीज को बहुत दुख हुआ । उसने कभी ये सोचा नहीं था ।
अभी कुछ दिन पहले ही तो वो अपने नाती पोतों के साथ खेल रहा था । धीरे धीरे बूढ़े मरीज और उस मरीज के बीच में बातें होने लगी । वो मरीज जो पहले से था उसके पास में ही खिड़की थी उस कमरे में एक ही खिड़की थी । पहले वाला मरीज । थोड़ी थोड़ी बातें कभी कभी करता था लेकिन जब उसने देखा कि ये लंगड़ा मरीज हर समय रोता रहता है तो वो उससे धीरे धीरे अधिक बातें करने लगा ।
वह उसे बताता कि भाई जिंदगी को सिर्फ दुखों से मत जोड़ो तो लगड़ा मरीज उससे पूछता कि भाई कैसे बताऊं मेरे साथ तो सिर्फ दुख ही दुख हुआ है । शुरु से ले के अभी तक और अभी भी देखो इस कमरे में तुम्हें तो खिड़की के बाहर कुछ दिख भी रहा है लेकिन मेरे पास तो कोई खिड़की भी नहीं है ।
और वो मरीज उससे पूछता खिड़की वाले मर्जी से कि बताओ भाई बाहर क्या दिख रहा है । ये सब सुनकर खिड़की वाला मरीज उसे बताता कि बाहर बहुत ही सुंदर नजारा है बहुत ही सुंदर दृश्य है । सामने पार्क है जहां लोग बैठे हुए हैं बच्चे खेल रहे हैं । छोटा सा तालाब है जिसमें बतखें तैर रही हैं । बड़े बड़े घने वृक्ष लगे हैं । एक बगीचा है जिसमें कई तरह के फूल लगे हुए हैं ।
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हर बुजुर्ग आपस में बात कर रहे हैं बेंच बनी हुई है वहां पर बैठे हुए हैं वह बहुत ही हंस हंस कर एक दूसरे से बात कर रहे हैं । इन सब बातों को सुनकर लगड़ा मरीज बहुत प्रसन्न होता ।
अक्सर ही लंगड़ा मरीज दुखी हो जाता पर अपने परिवार के बारे में सोचने लगता कि उसने परिवार के लिए क्या नहीं किया लेकिन उसके बेटे उसे यहां भर्ती कर गए हैं और मिलने भी नहीं आते । इस तरह वो लंगड़ा मरीज हर समय अपने भाग्य को कोसता रहता और दुखी ही रहता ।
उसे बहुत इच्छा होती कि खिड़की के बाहर का दृश्य देखूं लेकिन वह चल भी नहीं सकता था । इस पर उसे और गुस्सा आता । पहले वाला मरीज उसकी सब हालत समझ चुका था । और अपनी तरह से उसे हमेशा समझाने का प्रयास करता लेकिन लगडॉ मरीज हमेशा यही कहता कि भाई तुम्हें तो कम से कम खिड़की के बाहर देखने को मिल रहा है । पार्क दिखाई दे रहा है मुझे तो वो भी नहीं मिल रहा ।
खैर दिन बीतते गए कभी बारिश होती तो पहले वाला मरीज उसे बताता था कि रिमझिम बारिश हो रही है । बाहर पार्क में फूल खिल रहे हैं बहुत अच्छा लग रहा है । इस तरह से वो उसका मिजाज बदलने का प्रयास करता। इस तरह से उनका पूरा दिन खिड़की के बाहर क्या हो रहा है इसी में बीतने लगा ।
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अब उन्होंने पार्क में जो शाम को बच्चे खेलने आते थे उनकी भी बातें शुरू कर दी थी । उन्होंने उनके नाम रख दिए । लंगड़ा मरीज रोज पूछता कि आज कौन कौन आया । तो खिड़की वाला मरीज उसे सब बताता कि सब लोग आए लंगड़े मरीज के नाती पोते भी उसे याद आते रहते थे और वो उन बच्चों में अपने उन्हीं नाती पोतों को तलाशता था और उसे ये सब बहुत अच्छा लगता था ।
अक्सर सुबह जब वो उदास रहता तो खिड़की वाला मरीज बताता कि आज सुबह बहुत ही अच्छी हुई है । सुबह का सूरज धीरे धीरे अपनी किरणें बिखेरते हुए बढ़ रहा है । ये सुनकर लंगड़ा मरीज चुप हो जाता । और वही सोचने लगता जैसा वह खिड़की वाला मरीज बता रहा होता । कभी कभी शाम के समय जब वो उदास होके रो रहा होता तो अचानक खिड़की वाला मरीज ख़ुशी से चहक उठता ।
फिर उसे बताता कि फौजी बच्चे आज जल्दी ही आ गए । फिर वह बच्चों के बारे में बात करने लगते । और इन्हीं सब बातों में पूरी की पूरी शाम भी चलती । लंगड़ा मॉरिस खुश तो बहुत था उसे अच्छा लगता था लेकिन उसे यह अफसोस हमेशा रहता कि काश वो भी खिड़की वाले बेड पर होता तो पार्क में क्या हो रहा है वह खुद अपनी आंखों से देख पाता ।
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इसी तरह दिन पर दिन बीतने लगे लंगड़े मरीज की उदासी धीरे धीरे जाने लगी । दोनों सुबह से शाम खिड़की के बाहर के दृश्यों की ही चर्चा करते रहते और वो लंगड़ा मरीज पूछता रहता कि भाई जरा देखो वो लोग आए क्या बाहर क्या हो रहा है । आज माली आया की नही खिड़की वाला मरीज उसे सब बताता ।
कभी कभी अगर सो रहा होता तो भी उठकर बैठ जाता और उसे बताने लगता । रात में भी उनके बीच दिन में बाहर क्या क्या हुआ यही बातें होती । लंगड़ा मरीज अब खुश रहने लगा था लेकिन सुबह से ही खिड़की वाले मरीज की हालत खराब हो गई । उसे आईसीयू में तुरंत ले जाया गया । शाम तक उसने दम तोड़ दिया । जब लंगड़े मरीज को ये पता चला तो वो बहुत दुखी हुआ कि अब वो अकेले कैसे रहेगा ।
अगले दिन हॉस्पिटल स्टाफ से उसने कहा कि उसका बैड खिड़की की तरफ कर दिया जाए । उसके बैट को उसी खिड़की वाले मरीज के बेड पर कर दिया गया । वह अंदर ही अंदर खुश था कि चलो अब बाहर देखने को मिलेगा । अब कम से कम वह खिड़की के बाहर देख तो सकेगा । पार्क में क्या क्या हो रहा है उसे पता चल सकेगा । शाम को जब बच्चे आएंगे तो वो उन्हें भी देख सकेगा ।
लेकिन जब उसने खिड़की के बाहर देखा तो एकदम से सन्न रह गया । वहां सिर्फ हॉस्पिटल की दीवार थी । जब उसने हॉस्पिटल स्टाफ से पार्क के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि ऐसा कुछ नहीं है । वहां पर तो पहले से ही दीवार थी पर जब उसने पूछा कि नहीं वो मरीज तो मुझे वो सब बताता था कि बाहर पार्क हैं तो उन्होंने कहा कि वो कैसे बता सकता है वो तो अंधा था ।
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यह सुनकर लंगड़ा मरीज जोर जोर से रोने लगा । उसे खिड़की वाले मरीज की बहुत याद आने लगी । कैसे वो अंधा होके भी उसे लुभावन दृश्य बताता रहा । उसे हमेशा सकारात्मकता और प्रेरणा की बातें बताता रहा । उसे उसकी हर बात याद आने लगी। कैसे वो उससे लड़ता था कि तुम्हारे पास खिड़की है तो देख के बताते क्यों नहीं और वो सोने के बाद भी उठकर बैठ जाता और उसे बताने लगता कि बाहर क्या हो रहा है । लंगड़े मरीज को रह रहकर खिड़की वाले मरीज की हर बात याद आती ।
और उसे बहुत दुख होता कि उसने कभी भी उसे खुशी नहीं दी और उसे ये बात याद आती कि जब वो कहता कि भाई आप अपने को इतना दुखी और अभागा और असहाय क्यों समझते हो ऐसा मत समझो दुनिया में आप से भी ज्यादा असहाय लोग हैं । सोचते सोचते उसने कसम ली कि अब वो कभी भी दुखी नहीं होगा ।
अगले ही दिन एक दूसरे मरीज को उस कमरे में भर्ती किया गया । जिसे कैंसर था और जिसका जीवन बहुत ही कुछ दिनों का बाकी था वो बहुत ही दुखी था और अपने आपको कोस रहा था ये सब देखकर लंगड़े मरीज ने उससे कहा कि भाई अपने आपको कोसो मत । तुमसे भी असहाय और तुमसे भी दुखी लोग इस संसार में हैं । तो उसने कहा कि भाई ये बताइए कि खिड़की के बाहर कैसा दृश्य है । यह सुनकर लंगड़ा मरीज मुस्कराया और उसे खिड़की के बाहर पार्क के दृश्यों के बारे में बताने लगा ।