गुरु दक्षिणा
राहुल का माँ -इंजी सुनिये राहुल का टिफिन भी आया उसके ऑफिस में राहुल की मां बोली फिर राहुल के पापा क्या राहुल आज साथ में टिफिन लेकर नहीं गया ।( Stories On Teacher – गुरु दक्षिणा )
मा-आज उसके आफिस में मीटिंग थी बॉस के साथ सबेरे सबेरे । इसलिए बिना टिफिन के ही वो चला गया । राहुल के पापा-थिक हैं ठीक है मैं दे आता हूं । राहुल के पिता तैयार होने के लिए कमरे में चले गए ।
एक दिन पहले राहुल-मां मेरे दोस्त के पिताजी भी टीचर थे उन्होंने देखूं किसी आलीशान बंगला खरीदा है और तो मेरे पापा । हम आज भी इस किराए के मकान में रहते हैं राहुल गुस्से से बोला ।
राहुल के मा – राहुल तुम्हें पता नहीं शायद पर तुम्हारे पापा घर में सबसे बडे थे इसलिए दो बहन और दो भाइयों की शादी उन्हें ही करानी थी । और साथ में तुम्हारी पढाई का खर्चा और तुम्हारी बड़ी बहन की शादी भी तो थी किसने किया यह सब ।
फिर राहुल – क्या फायदा इन सबका। उनके भाई बहन अब बंगले में रहते हैं । कभी उन्होंने सोचा कि अपना भाई किराए के मकान में रहता है तो उसके लिए छोटा सा घर खरीद के दे दे । ये सुनकर मां की आंखों में आंसू आ गए ।
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उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि जन्म दिया बेटा अपने बाप के बारे में ऐसी बातें कर रहा है । फिर मां बोली तुम्हारे पिता ने अपना कर्तव्य निभाया अपने भाई बहनों से कभी किसी चीज की उम्मीद नहीं की ।
राहुल पागलों जैसा बोल रहा था अच्छा वो ठीक है पर पिताजी लड़कों की ट्यूशन लेते थे उसे अगर फीस लेते तो आज पिताजी पैसों की गद्दी पर सोते ।
आजकल के क्लास वाले देखो कैसे इम्पोर्टेड गाड़ियों में घूमते हैं । फिर राहुल के मा ने कहा ,लेकिन तुम्हारे पिता के कुछ उसूल थे ।
ज्ञान बांटने के पैसे नहीं लेने थे इसलिए तो उन्हें ढेर सारे पुरस्कार भी मिले पता भी है तुम्हे । ये सुनते ही राहुल जोर से चिल्लाया क्या फायदा इन पुरस्कारों का । क्या उनसे हमारा मकान बनेगा पड़े हैं धूल खाने में उस कबाड़खाने में कोई नहीं पूछता उनको ।
तभी उनके दरवाज़ा की बेल्ल बजती हैं पिताजी ने अपनी बातों को सुन नहीं माना इस डर से राहुल का चेहरा उतर गया लेकिन पिताजी किसी से बात किए बिना ही अपने कमरे में चले गए । ये था कल का झगड़ा।
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और आज मोहन लाल ने साइकल को टिफिन लगाया और कड़ी धूप में राहुल के ऑफिस पहुंच गए । कड़ी धूप होने के कारण वह थक गए थे । ऑफिस पहुंचने पर उनको सिक्यॉरिटी गार्ड ने रोका ।
मोहनलाल ने पूछा राहुल सर को टिफिन देना था क्या मैं अंदर जा सकता हूं । फिर सिक्योरिटी ने कहा अभी नहीं दे सकते वो बॉस के साथ मीटिंग में है जब मीटिंग खत्म होगी तब दे देना ।
चलो यह से हटो बॉस तुम्हें देखना नहीं चाहिए । अगर बॉस को दिख गयी तो मेरी हालत खराब हो जाएगी चलो जाओ उधर ।
मोहनलाल कुछी दूरी पर धूप में खड़े रहे मीटिंग एक घंटे के ऊपर तक चली उनके पैर में दर्द होने लगा । तभी आफिस का केबिन खुलने का आवाज़ भी आई राहुल बॉस के पीछे पीछे आया धूप खड़े पिताजी को देखकर वह मचलया ।
चलते चलते बॉस का नज़र मोहनलाल पेर पैड गयी । गाड़ी में बैठने के वजह वो पूछता हैं सामने धूप में कौन खड़ा हैं उनके गड से पूछा । गाड़ डरते हुए कहा कि अपने राहुल सर के पिता हैं टिफ़िन देने के लिए आये थे ।
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फिर बॉस ने कहा बुलाओ उन्हें तो राहुल घबरा गया उसके पाचीन छूट गए उसे अपने पिता पेर बहत गुस्सा आया । गाड़ के बुलाने पर मोहनलाल अंधेर आये बॉस उनके पास गए और बोल्ड आप मोहनलाल सिर हैं ना?सरकारी स्कूल में ऑफि टीचर थे न?
तो मोहनलाल ने कहा है पर आप कैसे पचानते हैं मुझे ? कुछ समझने से पहले ही बॉस ने मोहनलाल के पैर छुए । राहुल और सब लोग यह देखकर हाका बक्का रहे गए ।
फिर बॉस ने सिर में बिजय आपके स्टूडेंट था । आप मुझे पफ ने के लिए घर आते थे । तो मोहनलाल को याद आया उसने कहा हैं हैं मुझे याद आया बापरे तुम तो बहत बड़े आदमी बन गए हो ।
बिजय मुस्कुराया और बोला सर् आप यह धूप में क्या कर रहे है । चलिए अंधेर बैठते हैं बहत सारि बातें करनी हैं अप्प से ।
फिर सिक्योरिटी को फटकार लगाया और बोला तुम इन्हें अंधेर केयू नही बैठाया तो सिक्योरिटी ने शर्म ने माथा नीचे कर दिया ।
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फिर मोहनलाल बोले इसमे इनका कोई गलती नही हैं आपको परेशानी न हो इसीलिए में बाहर बैठा था ।
बिजय ने मोहन लाल का हाथ थाम और उनको अपने आफिस के आँफर ले गए । और आपने कुर्सी पे उनको बैठने दिया तो मोहनलाल हिचखीचते हुए बोले नही नही यह कुर्सी तो तुमरे हैं ।
तो बिजय ने कहा सर आपके वजह से तो यह कुर्सी मुझे मिली हैं । इसलिए इसपर सबसे पहले आपके हॉक बनता हैं । विजय ने जबरदस्ती मोहनलाल को अपने कुर्सी पर बैठाया ।
फिर सब को कहा शायद आपको पता नहीं कि अगर सर नहीं होते तो मैं अपने पिता साथ दुकान में बैठा रहता । राहुल और मैंनेजार अचर्ज्य से देखते ही रह गए । फिर भी जाने का स्कूल के टाइम में एक एवरेज स्टूडेंट था । पढ़ाई में दिलचस्पी नहीं थी मार्क्स कम आरहे थे इस लिए मेरी मां सर के पास उनके घर ले गए थे ।
और ट्यूशन लेने के लिए कहां पर सर के घर पर जगा नहीं थी इसलिए वो हमारा घर आकर मुझे पढ़ाने लगे । लेकिन सर ने कभी फीस नहीं ली सर के पढ़ाने के तरीके से फिर मुझे धीरे-धीरे पढ़ाई में इंटरस्ट आने लगी ।
और मैंने दसवीं में दूसरा नंबर लाया यह देखकर मैंने हवा में उड़ने लगा। तब में मिठाई लेकर सर के घर गया । 10,000 के चेक सर् को दिया लेकिन वो नही लिया । तब सर ने एक बात कही थी वह आज ही मुझे याद है ।
सर ने कहा मैंने कुछ नहीं किया आपके बेटा ही होशियार था । मैंने सिर्फ उसे रास्ता दिखाया है और मैंने ज्ञान बेचता नहीं हूँ । दान करता हूँ ।
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फिर मैंने 12th करने के बाद मस किया और मैंने बिदेश जाकर पढ़ाई की । और वापस आने के बाद के कंपनी शुरू की । एक पत्थर को सर ने हीरा बना दिया ।
मोहनलाल के आंख में आंसू आ गए यह सच में कमाल की बात है । बाहर की दुनिया में पढ़ाई की बाजार चल रहा है और इन्होंने बिना फ़िश लिए पढ़ाया । मान गए सर आपको ।
ऐसे लोग उसूल के पक्के होते हैं इन्हें पुरस्कार और पैसे की इच्छा नहीं थी । इन ए तो सिर्फ अपने स्टूडेंट भला हो यह दिन रात सोचते थे । फिर भी जो ने पूछा सर क्या आज भी आपने उसी किराए का मकान में रहते हो ।
मोहनलाल की जगह राहुल ने ही जबाब दिया हां सर उसी किराया की मकान पर ही रहते हैं । फिर विजय ने कहां आज मैं अपने सार को गुरु दक्षिणा दूंगा इसी शहर में मेरा कही सारे फ्लैट हैं में उसी में से आपके नाम पर एक फ्लैट करता हूँ ।
मोहन लाल ने कहा इतिनि बड़ी गुरुदखिना मुझे नही चाहिए । फिर विजय ने कहा सर प्लीज मुझे आपके लिए कुछ करने का मौका दीजिये ।
और राहुल को फटकार लगाते हुए कहा मुझे यह बड़ा करो कि आप आपके पिता के साथ अंतिम सांस तक रहोगे । फिर राहुल इमोशनल हो गया और कहां सर मैं वादा करता हूं मैं अपने पिता के साथ ही रहूंगा ।
तो दोस्तों आप से गुजारिश से की कभी अपने पिता से यह ना पूछिए की उन्होंने आपके लिए क्या किया और क्या कमाया है । जो कुछ कामना है वह अपने दम पे कमाओ । उन्होंने आपको जो पढ़ाया है और सिखाया है वो आपको कमाने में मदद करेगी । ध्यान्यबाद ।
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